यह पाठ्यचर्या विद्यार्थियों के भीतर महिलाओं के मुद्दों पर शोध करने की जिज्ञासा पैदा करती है। इस पाठ्यचर्या के अध्ययन से सामाजिक विज्ञान शोध प्रविधि का तो  बोध होता ही है, साथ ही साथ स्त्रीवादी शोध प्रविधि की भी विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है। सामाजिक विज्ञान शोध प्रविधि की महिलाओं के मुद्दों पर काम करनी के सीमाओं के कारण स्त्रीवादी शोध प्रविधि की अत्यंत आवश्यकता होती है। इस पाठ्यचर्या में दोनों को विस्तार से समझाया गया है। महिलाओं पर शोध की बड़ी चुनौती शोध अध्ययन सामग्री की होती है। इस पाठ्यचर्या में विधार्थी को  शोध के  लिए पारंपरिक सामग्री के साथ नए अभिलेखों का निर्माण करने की पद्धति का भी बोध होता है।  इसके लिए विभिन्न आख्यानों,मौखिक साहित्य,मौखिक इतिहास, लोक कथाएँ, लोक गीत जैसे वैकल्पिक स्रोतों को शामिल किया गया है। महिलाओं के मुद्दों पर अभी भी गंभीर शोध का बेहद अभाव है। यह पाठ्यचर्या महिलाओं के मुद्दों विद्यार्थियों को गंभीरता और संवेदनशीलता के साथ महिलाओं के मुद्दों पर शोध करने के लिए तैयार करती है।


प्रस्तुत पाठ्यचर्या समाज में स्त्री-पुरुष के मध्य व्याप्त सत्ता-सम्बन्धों के असंतुलन को समझने का सैद्धांतिक बोध पैदा करती है। नारीवादी सैद्धांतिकी न केवल स्त्रियॉं की अधीनता को समझने का मार्ग प्रशस्त करती है वरन असमान सत्ता-सम्बन्धों को बदलने का ज्ञान भी उपलब्द्ध कराती है। नारीवादी सैद्धांतिकी का प्रमुख लक्ष्य उस ज्ञान उत्पादन से है जो स्त्रियॉं की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करता है. नारीवाद समाज को देखने और समझने का एक वैश्विक दृष्टिकोण है। नारीवाद से आशय किसी एक विचार से नहीं है। नारीवाद में कई सारी धाराएँ हैं। उनमें आपस में स्त्रियॉं की मुक्ति को प्राप्त करने के साधनों को लेकर पर्याप्त मतभेद हैं। लेकिन सभी का साध्य स्त्री की मुक्ति है। इस पाठ्यचर्या में नारीवाद की विभिन्न धाराओं पर विस्तार के साथ बात की गई है जिससे विद्यार्थी नारीवादी सैद्धांतिकी को व उनमें व्याप्त अंतरों को विस्तार से जान पाएंगे. इसी के साथ-साथ इन नारीवादी विचारों को भारतीय संदर्भ के साथ जोड़ना इस पाठ्यचर्या का प्रमुख उद्देश्य है।