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चीनी भाषा परिचय – I

 

चीनी लिपि की उत्पत्ति और उसका विकास*

 

चीनी लिपि यानी हान जातीय लिपि  विश्व में सब से पुरानी , सब से व्यापक क्षेत्रों व सब से ज्यादा लोगों में प्रयुक्त लिपि है , चीनी लिपि की उत्पत्ति तथा उस के प्रयोग से चीनी राष्ट्र के सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा मिला ही नहीं , साथ ही विश्व संस्कृति के विकास पर भी इस का गहरा प्रभाव पड़ा है ।

    आज से करीब छै हजार साल पहले के पानफो खंडहर की खुदाई से प्राप्त  अवशेषों पर पचास से अधिक किस्मों की खींची गई रेखाएं  पायी गई । ये रेखाएं सुव्यवस्थित रूप में पंक्तिबद्ध हैं और खींचने का कोई नियम भी होता है , जिस में सरल लिपि की विशेषता मिलती है , विद्वानों का मत है कि ये रेखाएं चीनी लिपि का अंकुरित रूप है ।

     चीनी लिपि ने जिस काल में व्यवस्थित रूप लिया था , वह ईसापूर्व 16 वीं शताब्दी का सांग राज्यकाल था। पुरातत्वी खोज से यह सिद्ध हुआ है कि सांग राजवंश के प्रारंभिक काल में चीनी सभ्यता काफी ऊंचे स्तरपर पहुंच चुकी थी , जिस की एक ज्वलंत विशेषता कच्छ खोलों तथा पशु हड्डियों पर खुदे अक्षरों का विकास था। कच्छ खोलों और पशु हड्डियों पर खुदे अक्षर चीन के प्राचीनतम अक्षर थे । चीन के सांग राजवंश में राजा किसी प्रकार का काम शुरू करने से पहले शकुन निकालने का अनुष्ठान करता था , कच्छ खोलों व पशु हड्डियों पर जो अक्षर खोदे गए थे , वे सगुन विचारने के साधन थे ।

 

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   चीनी लिपि का चीन देश के अलावा उस के पास पड़ोस के देशों पर भी बड़ा प्रभाव पड़ा है , जापान ,वियतनाम और कोरिया आदि देशों की लिपि  चीनी लिपि के आधार पर बनायी गई थी ।

 

चीनी भावचित्र

चीनी भावचित्र (Chinese characters) चीनी भाषा और (कुछ हद तक) जापानी भाषा लिखने के लिए इस्तेमाल होने वाले भावचित्र होते हैं। इन्हें चीनी के लिए जब प्रयोग किया जाए तो यह हान्ज़ी (汉字/漢字, hanzi) कहलाते हैं और जब जापानी के लिए प्रयोग किया जाए तो कान्जी (漢字, kanji) कहलाते हैं। पुराने ज़माने में इनका प्रयोग कोरियाई भाषा और वियतनामी भाषा के लिए भी होता था। चीनी भावचित्र दुनिया की सब से पुरानी चलती आ रही लिखने की विधि है।

 

भावचित्रों की क़िस्में (चीनी भावचित्रों की कई श्रेणियाँ होती हैं):

 

चित्रचिह्न

यह कभी चित्र हुआ करते थे लेकिन लिखाई में आसानी लाने के लिए और मानकीकरण करने के बाद इनकी शक्लें थोड़ी बदल गई हैं। उदाहरण स्वरूप, (रन) यानि 'व्यक्ति', (री) यानि 'सूरज', (युए) यानि 'चाँद', और (मू) यानि 'वृक्ष'। लगभग ४% चीनी भावचित्र इस श्रेणी के हैं। अंग्रेजी में इस श्रेणी के शब्दों को 'पिक्टोग्रैम' (pictogram) कहते हैं।

 

भावचित्र

यह चित्रों में थोड़ा फेर-बदल कर के उन्हें अन्य मतलब देते हैं। जैसे कि जहाँ (मू) का अर्थ 'वृक्ष', वहाँ दो वृक्षों को जोड़कर (लिन) बनता है, जिसका मतलब '(वृक्षों का) झुरमुट' है। अगर तीन वृक्ष जोड़कर (सेन) लिखे, तो इसका अर्थ 'जंगल' होता है। उसी तरह (दाओ) का मतलब तो 'चाकू' है लेकिन इसकी धार पर निशान लगाने से (रेन) बनता है, यानि '(चाकू की) धार'। ज़रा-ज़रा से निशान बनाने से नए अर्थों वाले शब्द बनाए गए हैं। अंग्रेज़ी में इस श्रेणी के शब्दों को 'इडियोग्रैम' (ideogram) कहते हैं।

 

 

Evolution of Chinese characters

 

स्त्रोत: http://www.omniglot.com/chinese/evolution.htm

 

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स्त्रोत: https://en.wikipedia.org/wiki/Chinese_characters

 

इस संबंध में अधिक जानकारी हेतु निम्नलिखित स्त्रोत उपलब्ध है:

 

संदर्भ-ग्रंथ:

1)    Peiyuan, Li & Yuan, Ren. (2008). 基础汉语课本 (修订本) Elementary Chinese Readers (revised ed.) Vol. I. Beijing: Sinolingua, China  

2)     Yuhua, Kang & Siping, Lai. (2005). 汉语会话 301 Conversation Chinese 301. Beijing Language and Culture University Press

3)     Huaypeng, Tan. (2000). 趣味汉字 What’s in a Chinese Character. New World Press

4)     Jian, Zhou. (1996). 500 Basic Chinese Characters: A Speedy Elementary Course. Sinoligua, China

5)     (2007). 汉语800 (चीनी भाषा के 800 अक्षर). Beijing: Foreign Language Teaching and Research Press

 

ई-संसाधन:

 

1.    http://www.clearchinese.com/chinese-writing/strokes.htm

2.    http://tcfl.tingroom.com/2013/12/869.html

3.    http://www.121chineselessons.com/resources/chinese-characters-flash/stroke-orders/

4.    http://www.121chineselessons.com/resources/chinese-characters-flash/writing-strokes/

5.    http://learn-chinese.jbdirectory.com/Chinese_character_strokes

 

 

अन्य:

 

1)    चीनी भाषा एवं संस्कृति का संक्षिप्त परिचय – I (विभाग द्वारा प्रस्तुत पाठ्य सामग्री)

2)    चीनी भाषा एवं संस्कृति का संक्षिप्त परिचय – II (विभाग द्वारा प्रस्तुत पाठ्य सामग्री)

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

*प्रस्तुत कर्ता: डॉ. अनिर्बाण घोष, सहायक प्रोफेसर (चीनी भाषा), महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र)