केंद्र के उद्देश्य


1.  दलित एवं आदिवासी अध्ययन की सैद्धांतिकी का विकास

2.  दलित एवं आदिवासी अध्ययन के स्वरुप, क्षेत्र एवं आयामों को परिभाषित एवं विकसित करना 

3. दलित एवं आदिवासी अध्ययन की प्रासंगिकता 

4. दलित एवं आदिवासी विकास के मुद्दों की समझ पैदा करना.

5. दलित एवं आदिवासियों के अधिकार एवं संरक्षण के लिए नीतियों को बनाना

6. दलित एवं आदिवासियों के सशक्तिकरण के लिए अम्बेडकर की विचारधारा की समझ विकसित करना और उनके ऊपर होने वाले सभी प्रकार के     

     अत्याचारों एवं हिंसा के विरोध में स्वर को मुखर करना.

7. भारतीय दलित एवं अमेरिकन अश्वेत समुदायों के साथ अन्य देशों के वंचित समूहों का तुलनात्मक अध्ययन करना. भारतीय आदिवासी समाज और  

    अन्य देशों के आदिवासी समाज के साझे मुद्दों के प्रति समझ पैदा करना और उनके सशक्तिकरण के लिए विभिन्न देशों की सरकारों और उन देशों में         

     निवास कर रहे दूसरे समुदायों के बीच संवेदनशीलता पैदा करना.


 

                                              Objectives of the Centre 

    

 1. Conceptualizing Dalit and Tribal Studies.

2.    Developing and understanding of the nature, scope and dynamics of Dalit and tribal studies.

3.    Contextualizing Dalit and Tribal Studies.

4.    Developing an understanding of Dalit and Tribal Issues.

5.    Formulation policies for protecting the rights of Dalit & Tribals.

6.    Understanding Ambedkar thought for the empowerment of the Dalit and Tribal as a means of their release form exploitation and injustice, which are social forms of violence against the oppressed.

7.    Making comparative studies on marginalized communities in various countries such as Indian Dalits and American Blacks of socially deprived communities of other countries; Indian Tribes and Tribes of other countries and to understand the similarities as well as difference existing in various societies and to study various programmes and methods of empowerment initiated by Governments of various countries.

 

                                        Faculty

 

 1. प्रो. एल. कारुण्यकारा         - निदेशक                                               Prof. Dr. Lella Karunyakara - Director ; Email: - karunyakara@gmail.com 

  2.  डॉ. किरण नामदेवराव कुंभारे - सहायक प्रोफेसर                                Dr. Kiran Namdeorao Kumbhare; Assistant Professor; Email: - kiran.kumbhare56@gmail.com                                

  3.  डॉ. राकेश सिंह फकलियाल  - सहायक प्रोफेसर                                 Dr. Rakesh Singh Phakaliyal - Assistant Professor; Email: rakeshbbau@gmail.com                             

 

                          Non-Teaching Staff

           

           1. वैशाली ज्ञानेश्व खडसे                                                 Mrs Vaishali Gyanwswar Khadse -  Assistant 

            2. मंगेश गजघाटे                                                           Mr Mangesh Gajghate - Multi-Task Staff

           Contact :   07152-230901 & 07152-230905 Ext: 222.    Email: dalit.tribalstudies@gmail.com


दलित इतिहास विषय का उद्देश्य है कि भारतीय समाज मे दलित समुदाय के बारे मे अध्ययन कराना जिसमे इन समुदाय के इतिहास का भी ज्ञान प्राप्त कर सकें। भारतीय समाज मे प्रारंभ से ही दलित सुमदाय को जाति व्यवस्था के कारण एक निम्न जाति के रूप मे देखा जाता है जिस कारण से समाज मे इनको एक अलग नजर से व सामाजिक तिरस्कार का सामना करना पडता है। यहा हम दलित समुदाय के बारे मे प्राचीन, मध्य, आधुनिक व समकालीन काल के सामाजिक और ऐतिहासिक, ब्रिटिश कालीन आदि स्थिती पर अध्ययन करेंगे ।    


प्राचीन काल मे ईसा पूर्व छठी शताब्दी मे अनेक धार्मिक संप्रदायो का उदय हुआ । अनेक मत तथा दर्शनो के उदय होने के कारण बौद्धिक आंदोलन का रूप ग्रहण किया । विभिन्न मतो को मानने वाले अनुयायी घूम-घूम कर अपने धर्म – दर्शन का समाज मे प्रचार करते तथा एक दूसरे के मत या  दर्शन का खंडन भी करते थे । भारत मे इस सामाजिक – सांस्कृतिक आंदोलन के कई प्रत्यक्ष और परोक्ष कारण थे, जो तत्कालीन सामाजिक एवं संस्कृति परिवर्तन मे निहित थे इन परिवर्तनो से प्राचीन वैदिक परंपरा की धार्मिक और सामाजिक मान्यताए तथा जीवन पद्ध्त्ति के अनेक तत्व केवल रुढि बनकर रह गए जो सामाजिक विकास मे बाधक होने लगे। प्राचीन काल मे प्रचलित विभिन्न संप्रदायो मे से आगे चलकर बौद्ध धर्म अधिक प्रसिद्ध हुए। इस  धार्मिक सप्रदाय ने पुरातन वैदिक ब्राह्मण धर्म के अनेक दोषों पर प्रहार किया था और इन संप्रदाय तथा कई दार्शनिको का उदय हुआ और उनके द्वारा चलाए गए आंदोलन को  प्राचीन भारत मे सामाजिक सांस्कृतिक आंदोलन पर अध्ययन करेगे।