दलित इतिहास विषय का उद्देश्य है कि भारतीय समाज मे दलित समुदाय के बारे मे अध्ययन कराना जिसमे इन समुदाय के इतिहास का भी ज्ञान प्राप्त कर सकें। भारतीय समाज मे प्रारंभ से ही दलित सुमदाय को जाति व्यवस्था के कारण एक निम्न जाति के रूप मे देखा जाता है जिस कारण से समाज मे इनको एक अलग नजर से व सामाजिक तिरस्कार का सामना करना पडता है। यहा हम दलित समुदाय के बारे मे प्राचीन, मध्य, आधुनिक व समकालीन काल के सामाजिक और ऐतिहासिक, ब्रिटिश कालीन आदि स्थिती पर अध्ययन करेंगे ।
प्राचीन काल मे ईसा पूर्व छठी शताब्दी मे अनेक धार्मिक संप्रदायो का उदय हुआ । अनेक मत तथा दर्शनो के उदय होने के कारण बौद्धिक आंदोलन का रूप ग्रहण किया । विभिन्न मतो को मानने वाले अनुयायी घूम-घूम कर अपने धर्म – दर्शन का समाज मे प्रचार करते तथा एक दूसरे के मत या दर्शन का खंडन भी करते थे । भारत मे इस सामाजिक – सांस्कृतिक आंदोलन के कई प्रत्यक्ष और परोक्ष कारण थे, जो तत्कालीन सामाजिक एवं संस्कृति परिवर्तन मे निहित थे इन परिवर्तनो से प्राचीन वैदिक परंपरा की धार्मिक और सामाजिक मान्यताए तथा जीवन पद्ध्त्ति के अनेक तत्व केवल रुढि बनकर रह गए जो सामाजिक विकास मे बाधक होने लगे। प्राचीन काल मे प्रचलित विभिन्न संप्रदायो मे से आगे चलकर बौद्ध धर्म अधिक प्रसिद्ध हुए। इस धार्मिक सप्रदाय ने पुरातन वैदिक ब्राह्मण धर्म के अनेक दोषों पर प्रहार किया था और इन संप्रदाय तथा कई दार्शनिको का उदय हुआ और उनके द्वारा चलाए गए आंदोलन को प्राचीन भारत मे सामाजिक सांस्कृतिक आंदोलन पर अध्ययन करेगे।
- टीचर: Rakesh Singh phakaliyal