भारतभूमि

वट-वृक्ष को जानने के लिए मात्र इसकी मूलभूमि में खड़े तने को ही नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इसके साथ ही अन्य भूमियों में इसकी बढ़ोत्तरी को खोजना चाहिए, तभी इसकी जीवनी शक्‍ति का वास्तविक परिचय मिल सकेगा।भारतीय सभ्यता एक वट-वृक्ष की भाँति है, जिसकी गुणकारी छाया अपने जन्मस्थान से सुदूर तक फैली हुई है..............भारत, राजनीतिक भारत नहीं, अपितु आदर्श भारत, विदेशों में विस्तार पाकर जीवंत तथा वृदि्धमान हो सकता है।”                                                                                         -रबींद्रनाथ ठाकुर

हिंदी भाषा एवं साहित्य की उन्नति के साथ ज्ञान के विभिन्न अनुशासनों में अध्ययन, अनुसंधान एवं प्रशिक्षण के लिए एक समर्थ माध्यम के रूप में हिंदी के सम्यक विकास के मुख्य लक्ष्य के साथ-साथ स्थापित इस विश्वविद्यालय में अनुवाद एवं निर्वचन विद्यापीठ की स्थापना वर्ष 1997 में किया गया। यह  विद्यापीठ अनुवाद अध्ययन के अतिरिक्त विश्व भर में फैले भारतवंशियों के विविध पक्षीय अवदान के मूल्यांकन हेतु प्रवासन एवं डायस्पोरा अध्ययन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से कार्य कर रहा है।

प्रवासन एवं डायस्‍पोरा अध्‍ययन विभाग का गठन अंतर-अनुशासनिक शोध एवं शैक्षणिक गतिविधियां संचालित करने के लिए किया गया है। इस विभाग में सामाजिक विज्ञान एवं मानविकी अनुशासनों, यथा समाजशास्‍त्र, मानवशास्‍त्र, राजनीति विज्ञान, साहित्‍य एवं सांस्‍कृतिक अध्ययन आदि के संधि-क्षेत्र में डायस्‍पोरा से जुड़े विभिन्‍न मुद्दों का अनुशीलन किया जारहा है।

प्रवासन एवं डायस्‍पोरा अध्‍ययन विभाग द्वारा शोध गतिविधियों के अंतर्गत भारतीय डायस्‍पोरा के ऐतिहासिक संदर्भ, उसकी सभ्‍यतागत धरोहर, सामाजिक एवं सांस्‍कृतिक निरंतरता एवं रूपांतरण, मेजबान समाज के संदर्भ में उनका आर्थिक एवं राजनैतिक जीवन, भारतीय स्‍वभूमि तथा भारतीय डायस्‍पोरा के बीच संप्रेषण एवं जुड़ाव को समृद्ध करने वाले तत्‍वों को सम्मिलित किया जा रहा है।

 विश्‍व संस्‍कृति में भारतीय डायस्‍पोरा एक महत्‍वपूर्ण और कुछ संदर्भों में विशिष्‍ट स्‍थान निर्मित कर रहा है। वर्तमान भारतीय डायस्‍पोरा का उद्भव अंग्रेजों द्वारा भारत में राजनैतिक प्रभुत्‍व स्‍थापित करने तथा उसे औपनिवेशिक शासन प्रणाली के हिस्‍से के रूप में अंगीकार करने से मुख्‍यत: जुड़ा है। उन्‍नीसवीं शताब्‍दी में अनुबंधित श्रमिकों के रूप में बड़े पैमाने पर भारतीयों को सुदूरवर्ती औपनिवेशिक बागान क्षेत्रों में ले जाया गया। इन्‍हीं परिस्थितियों में मारीशस, त्रिनिदाद, सूरीनाम, दक्षिण अफ्रीका, फिजी, श्रीलंका, गयाना, मलेशिया एवं अन्‍य देशों में बसे भारतीय मूल के लोगों ने विविध गतिविधियों से एक विशिष्‍ट पहचान निर्मित की है।

प्रवासन एवं डायस्‍पोरा अध्‍ययन विभाग द्वारा औपनिवेशिक युग से वर्तमान तक भारतीय डायस्‍पोरा के गठन एवं संचालन की प्रक्रिया का अध्‍ययन किया जा रहा है। वर्तमान में विभाग कीशिक्षण एवं शोध गतिविधियों का केंद्र-बिंदु अनु‍बंध आधारित श्रम व्‍यवस्‍था से निर्मित भारतीय डायस्‍पोरा एवं आधुनिक भारत से होने वाली विभिन्न प्रवासन धाराओं से उपजे ट्रांसनेशनल समुदाय हैं। 

पाठ्यचर्याओं का केंद्र बिंदु Focus of the Courses

•      अंतरराष्ट्रीय प्रवासन की प्रक्रिया, कारण एवं प्रभाव

•      भारतीय डायस्पोरा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

•      भारतीय डायस्पोरा की सामाजिक-सांस्कृतिक बनावट

•      भारतवंशी भाषाएं

•      भारतवंशी साहित्य एवं प्रवासी साहित्य

•      नीति निर्माण, अंतरराष्ट्रीय संबंध एवं डायस्पोरा डिप्लोमेसी

•      भारतीय डायस्पोरा की राजनीतिक-आर्थिक-वाणिज्यिक उपलब्धियां